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शहरों एवं सरकारी योजना का नाम बदलना कोई नई बात नहीं हैं भारत में हर पार्टी शहरों कें नाम एवं सरकारी योजना का नामकरण समय-समय पर करती रहीं है। बम्बई का मुंम्बई, कलकत्ता अब कोलकाताः इनका कहना है कि नाम से ही हर शहर की पहचान होती है। अब हरियाणा सरकार ने गुड़गांव जिले का नाम बदलकर गुरूग्राम रखने का फैसला किया हैं। मेवात जिले का नाम बदलकर नूह कर दिया गया है।
हरियाणा
गीता की धरती है और गुड़गांव प्राचीन समय से शिक्षा का केन्द्र रहा है।( चाहे अब नहीं हो) इसलिए लोगों की मांग थी कि इसका नाम बदलकर गुरूग्राम कर दिया जाए। लेकिन कई लोग गुड़गांव का नाम बदलकर गुरूग्राम करने का विरोध कर रहे हैं।
गुरूग्राम नाम गुरू द्रोणाचार्य के नाम पर रखा गया है। महाभारत की प्रचलित कहानियों कें मुताबिक, गुरू द्रोणाचार्य को दलित विरोधी और जातिवादी माना जाता है। खट्टर सरकार ने नाम बदलने का फैसला किया तो गुरू द्रोणाचार्य और एकलव्य की कहानी फिर से सबके दिलों में ताजा हो गई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार -द्रोणाचार्य ने अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को दुनिया का सबसे महान तीरंदाज बनाने का वादा किया था। दलित एकलव्य को जब द्रोणाचाय दी़क्षा देने से इनकार कर दिया तो, एकलव्य ने मन ही मन द्रोणाचार्य को गुरू मानकर, द्रोणाचाय की प्रतिमा स्थापित कर अभ्यास शुरू कर दिया। जब उनकी तीरंदाजी की चर्चा पांडवों के पास पहुंची तो वे परेशान हो गए और गुरू द्रोणाचार्य के पास गए। इसके बाद गुरू द्रोणाचार्य एकलव्य के पास पहुंचे और एकलव्य से कहा कि अगर तुम मु़झे गुरू मानते हो तो मु़झे गुरूदक्षिणा देनी चाहिए। दलित एकलव्य इसके लिए तुरंत तैयार हो गया और द्रोणाचार्य ने एकलव्य के दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया। एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर ग्रुरू के चरणों में रख दिया जिससे पांडवों को बडी राहत मिली।
यह स्वीकार्य हैं कि कोई शहर किसी प्राचीन या प्रसिध
के साथ अपनी पहचान को जोडना चाहता हैः लेकिन ग्रुरू द्रोणाचार्य के नाम के साथ दलित विरोधी पहचान जुडी हुई है । महाभारत में गुरू द्रोणाचार्य का निवास स्थान इसी गुड़गांव में बताया गया है। शहर बदने का नाम बदलने का मुद्दा 2010 और 2014 में भी उठा था।
द्रोणाचार्य के नाम शहर का नाम रखा जाने से दलित के जख्म हरे हो जाएंगे। बेहतर है कि गुड़गांव का नाम गुड़गांव की रहने दिया जाए जिससे जातीय संधर्ष की स्थिति उत्पन्न हो।
वैसे भी खट्टर जी अभी तक जाट आँदोलन से उबरे ही नहीं है तो उन्हें किसी भी तरह के विवाद में पड़ना शोभा नहीं देता है।
मेरे अनुसार आज देश में ये स्थिति नहीं है कि हम राजनेताओं को जबरदस्ती समाज में भेदभाव पैदा करने दें। समय आ गया है कि हम देश में इस तरह के अलगावादी तत्वों को उठा कर फेक दें और राष्ट्रनिर्माण की तरफ अपना योगदान दे। सरकार को अपना समय संरचनात्मक कार्यों में लगाना चाहिए न कि अल्पकालिक राजनीतिक लाभ वालें कार्यो में।
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