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भारतीय संसद को हमारी लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। जहॉ हमारे देश के विभिन्न राज्यों से चुने गये 543 सांसद हमारे देश की विकास एवं समस्यों से जुड़े मुददे पर सरकार एवं पुरे देश को अवगत कराते है एवं कानून को पास कर उसे पूरे देश में लागू करते है।
लेकिन संसद का हर सत्र विरोध, धरनों एवं प्रदर्शन की भंेट चढ़ता जाता है। इस संबध में हमारे पूर्व राष्ट्रप्रति एपी जे अब्दुल कलाम ने भी कहा था कि संसद को सही तरीके से नहीं चलने से हमारे देश को काफी नुकसान होता है। आज के समय प्रत्येक मिनट संसद चलने का खर्च 2लाख 50 हजार रूपया है। इस बार संसद का मानसून सत्र भी सुषमा स्वराज एवं ललित मोदी प्रकरण पर टिका है। जहॉ विपक्ष सुषमा की इस्तीफे को लेकर अड़ा है वहीं पक्ष संसदीय चर्चा की बात करता है। यह कोई नई बात नहीं हैं क्योंकि जो आज कांग्रेस कर रही है, वही काम पिछले कुछ वर्ष तक बीजेपी ने किया था।
सरकार द्वारा बुलाये गये सर्वदल संसदीय बैठक भी इस विरोध को रोक नहीं पाये। ऐसे में नेताओं पर गाज गिरना स्वभाविक था। जो कि कांग्रेस के 25 सांसदों पर गिरा, जब लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने उन्हें संसदीय सत्र को नहीं चलने के विरोध में निंलबित कर दिया। इस धटना के बाद कांग्रेस बौखला गयी है। यह धटना कोई नई नहीं है। इससे पहले भी निलंबित होने का प्रकरण हो चुका है। संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार 1989 में 63 सांसदों और 1987 में 12 सांसदो और 13 फरवरी, 2014 को 17 सांसदो को निलंबित किया गया था।
विरोध का एक मात्र कारण ललित मोदी प्रकरण है। इसके तहत विपक्ष सुषमा पर आरोप लगा रहा है कि उन्होनें अपने पद का गलत प्रयोग किया है। उन पर ललित मोदी को सरकार की तरफ से सहयोग देने की बात कही गई है। वही पक्ष सुषमा की बचाव में लगा हैं । अब तक 64 बिल पास होना बाकि हैं लेकिन मोदी प्रकरण मानसून संत्र को ख्ा गया।
आज देश में बहुत सारे ऐसे मुद्दे है जो इस विरोध के आगे नेताओं को दिख नहीं रहें है।
शायद इन मुद्दों पर हमारे देश के नेता कुछ कर पाते। आज के समय जरूरत है कि ये नेता हमारे देश के वास्तविक मुद्दों पर ध्याान दे ताकि हमारा देश विकास की दिशा में आगे बढ सके। हर सरकार विकास के लिए एक मापदंड निधारित करती है, लेकिन शायद ही वह समय पर पुरा हो पाया हो। अगर संसद नहीं चलेगा तो बिल पास नहीं होगा और विकास की गति जस की तस बनी रहेगी। यह सच है कि विपक्ष को अपनी आवाज सरकार के सामने रखने का हक है। लेकिन हक विकास की गति में पत्थ्र बन जाये तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। इस समय सरकार सामुहिक विकास की बात कहती है। लेकिन यह तभी संभव है जब हमारे नेता देश के मूल मुद्दों की तरफ ध्यान देना शुरू करे।
लेकिन संसद का हर सत्र विरोध, धरनों एवं प्रदर्शन की भंेट चढ़ता जाता है। इस संबध में हमारे पूर्व राष्ट्रप्रति एपी जे अब्दुल कलाम ने भी कहा था कि संसद को सही तरीके से नहीं चलने से हमारे देश को काफी नुकसान होता है। आज के समय प्रत्येक मिनट संसद चलने का खर्च 2लाख 50 हजार रूपया है। इस बार संसद का मानसून सत्र भी सुषमा स्वराज एवं ललित मोदी प्रकरण पर टिका है। जहॉ विपक्ष सुषमा की इस्तीफे को लेकर अड़ा है वहीं पक्ष संसदीय चर्चा की बात करता है। यह कोई नई बात नहीं हैं क्योंकि जो आज कांग्रेस कर रही है, वही काम पिछले कुछ वर्ष तक बीजेपी ने किया था।
सरकार द्वारा बुलाये गये सर्वदल संसदीय बैठक भी इस विरोध को रोक नहीं पाये। ऐसे में नेताओं पर गाज गिरना स्वभाविक था। जो कि कांग्रेस के 25 सांसदों पर गिरा, जब लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने उन्हें संसदीय सत्र को नहीं चलने के विरोध में निंलबित कर दिया। इस धटना के बाद कांग्रेस बौखला गयी है। यह धटना कोई नई नहीं है। इससे पहले भी निलंबित होने का प्रकरण हो चुका है। संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार 1989 में 63 सांसदों और 1987 में 12 सांसदो और 13 फरवरी, 2014 को 17 सांसदो को निलंबित किया गया था।
विरोध का एक मात्र कारण ललित मोदी प्रकरण है। इसके तहत विपक्ष सुषमा पर आरोप लगा रहा है कि उन्होनें अपने पद का गलत प्रयोग किया है। उन पर ललित मोदी को सरकार की तरफ से सहयोग देने की बात कही गई है। वही पक्ष सुषमा की बचाव में लगा हैं । अब तक 64 बिल पास होना बाकि हैं लेकिन मोदी प्रकरण मानसून संत्र को ख्ा गया।
आज देश में बहुत सारे ऐसे मुद्दे है जो इस विरोध के आगे नेताओं को दिख नहीं रहें है।
- देश की राजधानी में हर रोज प्रदूषण से लगभ 80 लोगों की मौत हो रही है
- हमारे समाज में गरीबी जस की तस है
- क्राइम एवं भ्रष्टाचार का ग्राफ हर रोज बढ रहा है
- समाज का एक बहुत बडा तबका आज भी सडक के किनारे अपनी जीवन गुजार रहा है
- लोग रोजी-रोटी की तलाश में शहर की तरफ पलायन कर रहे है
- कृषि विकास दर हर रोज गिरता जा रहा है
- देश का एक हिस्सा नक्सलवाद ही भेट चढ रहा है
- नौजवान अपनी शिक्षा हासिल कर नौकरी की तलाश में भटक रहे है
शायद इन मुद्दों पर हमारे देश के नेता कुछ कर पाते। आज के समय जरूरत है कि ये नेता हमारे देश के वास्तविक मुद्दों पर ध्याान दे ताकि हमारा देश विकास की दिशा में आगे बढ सके। हर सरकार विकास के लिए एक मापदंड निधारित करती है, लेकिन शायद ही वह समय पर पुरा हो पाया हो। अगर संसद नहीं चलेगा तो बिल पास नहीं होगा और विकास की गति जस की तस बनी रहेगी। यह सच है कि विपक्ष को अपनी आवाज सरकार के सामने रखने का हक है। लेकिन हक विकास की गति में पत्थ्र बन जाये तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। इस समय सरकार सामुहिक विकास की बात कहती है। लेकिन यह तभी संभव है जब हमारे नेता देश के मूल मुद्दों की तरफ ध्यान देना शुरू करे।
protest has become more of a nautanki in Indian Scenario. no one is interested in solving the issues but very much keen and do not want to loose any opportunity to be in front of the camera .
ReplyDeleteसर अगर कुछ काम करेंगे तो प्रोटेस्ट कौन करेगा??? और फिर नेता कैसे कहलाएँगे???
Deleteमे इस पर एक ही बात कहना चाहता हू कॉंग्रेस हॅमेसा कहती है ग़रीबी हटायगे वो काम सब मिल कर कर रहे है ना कोई बिल पास होगा ना डिव्ल्पमेंट होगा ना नोकारी होगी तो ग़रीब मार जायगे ओर तो सारी प्रोब्लम ही खतम ओर सारी पार्टिया को कुछ ओर टॉपिक ढूड़ना पड़ेगा
ReplyDeleteसटीक, स्पष्ट किंतु बहुत ही दुख-दाई टिप्पणी है यह! सचमुच में लगता ही नहीं है क़ि कोई देश की बेहतरी चाहता हो...
Deleteसर जिनको करने के लिए बैठाया है वो तो या धरना देते है या फिर बिना हेड्डी की ज़ुबान से एक दूसरे को ब्लेम करते है ओर इसी मे जनता का एंटर्टनमेंट भी हो जाता है ओर राजनेता का तो हो ही रहा है
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